बाबर के भारत आने से लेकर मुगलों को वापस खदेड़ने तक, क्या है महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) का पूरा इतिहास।

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सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत देश को हम वीरों की खान कहना उचित समझते हैं। क्योंकि इस देश की धरती ने हमे ऐसे वीर योद्धा दिए हैं, जिनके गौरव की गाथा भारत में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ऐसे ही एक वीर योद्धा मेवाड़ के राजा महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) रहे हैं, जिनसे युद्ध करते हुए राजाओं के पैर काँपते थे। आइए ऐसे महान योद्धा महाराज राणा सांगा के इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं।

  • THIS BLOG CONTAINS:
  1. कौन थे राणा सांगा?
  2. कैसा था उनका जीवन?
  3. कैसे मिला राणा सांगा को शासन?
  4. गागरोन की लड़ाई
  5. खतौली का युद्ध
  6. भारत में कैसे आया बाबर?
  7. बयाना का युद्ध
  8. खानवा का युद्ध
  9. मेवाड़ का शासन

कौन थे राणा सांगा?

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महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा ) की तस्वीर

राणा सांगा एक महान योद्धा के साथ-साथ, राजपूत समाज के स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक रहे हैं। उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा रायमल और माता का नाम रानी रतन कुंबर था। उनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था।

उनकी महानता के किस्से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में 100 से भी ज्यादा युद्ध लड़े, जिसमें उन्हें सिर्फ एक युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था। महाराणा सांगा ने उत्तरी भारत के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र मेवाड़ को नियंत्रित किया, जिसके कारण उन्हें भारत का अंतिम स्वतंत्र हिन्दू राजा भी माना जाता है।

कैसा था उनका जीवन?

राणा सांगा का विवाह रानी कर्णावती से हुआ, जिन्हें हम रानी कर्मावती के नाम से भी जानते हैं। उनके 4 पुत्र थे जिनके नाम रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह थे। राणा सांगा ने जजिया कर, जिसे मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर-मुस्लिम लोगों से वसूला जाता था, उसे भी हटा दिया था। वे सभी धर्म का सम्मान करते थे, राणा सांगा ने अपना पूरा जीवन अपनी प्रजा को समर्पित कर दिया था।

कैसे मिला राणा सांगा को शासन?

आपको बता दें कि राणा रायमल के चार पुत्र थे, पृथ्वीराज सिसोदिया, जयमल, संग्राम सिंह (राणा सांगा) और सेसां। राणा रायमल के शासनकाल के अंतिम समय से ही उनके तीन बेटे पृथ्वीराज सिसोदिया, जयमल और संग्राम सिंह (राणा सांगा) में शासन के लिए संघर्ष चलने लगा था। जिसके कारण वह तीनों एक भविष्यकर्ता के पास गए और तीनों के आग्रह करने पर उन्होंने राणा सांगा को मेवाड़ का शासक बताया था।

इसी कारण पृथ्वीराज सिसोदिया और जयमल ने राणा सांगा को वही मारने की कोशिश भी की, लेकिन पृथ्वीराज के चचेरे भाई महाराणा मोकल के पोते सूरजमल ने उनका बचाव किया। यद्यपि उस वार से राणा सांगा कि एक आंख फूट गई और शरीर पर पाँच घाव भी आए। इन घावों को लेकर सांगा वहाँ से भागने में सफल हुए। जयमल ने राणा सांगा का पीछा भी किया, लेकिन सांगा को राठौर बीदा ने बचा लिया। इसके बाद सांगा कुछ महीनों तक अजमेर के पास बसे श्रीनगर में कर्मचंद पंवार के यहाँ रहे। तब साल 1509 में कर्मचंद की सहायता से सांगा को मेवाड़ का शासन प्राप्त हुआ।

गागरोन की लड़ाई

गागरोन का युद्ध मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय और राणा सांगा के बीच सन् 1519 में लड़ा गया था। सांगा ने महमूद खिलजी से सामना करने के लिए अपनी 50,000 सैनिको की सेना लेकर गागरोन पर चढाई कर दी थी। यह देखकर महमूद खिलजी ने गुजरात के बादशाह की फौज अपनी सेना में शामिल कर ली थी, जिसका सेनापति आसिफ खां था। आसिफ खां ने महाराणा की विशाल फौज को देखकर महमूद को युद्ध न करने की सलाह भी दी थी। लेकिन महमूद खिलजी नहीं माना और दोनों सेना का गागरोन में आमना सामना हुआ था। मेवाड़ के घुड़सवारों ने गुजराती घुड़सवारों के बीच से आक्रमण किया, जिसके कारण वो सब बिखर गए और भागने लगे। राजपूतों ने मुस्लिम सेना को बुरी तरह काटना शुरू कर दिया था, जिससे बाकी बची सारी सेना का मनोबल टूट गया और वे इधर-उधर भागने लगे। जिसके परिणामस्वरूप राजपूतों को निर्णायक जीत मिली थी।

इस लड़ाई में महमूद खिलजी के 32 खास सिपहसालार (सेना के सबसे बड़े अधिकारी) और आशिफ खान का बेटा मारा गया था। हालाँकि आशिफ खान भागने में कामयाब हो गया था, लेकिन महमूद खिलजी बहादुरी से लड़ रहा था। तलवार लगने से जख्मी होने के कारण वह घोड़े से गिर पड़ा, जिसके कारण उसे पकड़ लिया गया और राणा सांगा के सामने ले जाया गया। तब राणा उसे चित्तोड़ ले आए और उसे 6 महीने तक बंदी बनाकर रखा। हालांकि कहा जाता है कि राणा ने खुद व्यक्तिगत रूप से उसकी देखभाल की और 6 महीने बाद उसे छोड़ दिया था।

खतौली का युद्ध

ये युद्ध राणा सांगा और इब्राहिम लोदी के बीच 1517 में लड़ा गया था। दोनों सेना हरवती की सीमा पर स्तिथ खतौली गांव के पास मिली थी। जहाँ इब्राहिम लोदी की सेना, राणा सांगा और राजपूतों की सेना की वीरता और रण-कौशल के सामने 2 पहर (5 घंटे) ही टिक पाई थी। जिसके कारण इब्राहिम लोदी युद्धभूमि छोड़कर भाग गया था, लेकिन मेवाड़ की सेना ने एक लोदी राजकुमार को बंदी बना लिया था और कुछ दिन बाद उसे रिहा कर दिया था।

भारत में कैसे आया बाबर?

इतिहास के पन्नो में बाबर के भारत में आने के दो मत दिए गए हैं।

  • पहला मत – बाबर ने अपने आत्मकथ्य बाबरनामा में लिखा था कि राणा सांगा ने एक योजना के बारे में बात करने और अपनी बात का यकीन दिलाने के लिए एक दूत भेजा था। उस दूत ने कहा था कि एक ओर से बाबर दिल्ली के करीब आ जाए, दूसरी ओर से राणा सांगा की सेना इब्राहिम लोदी की तरफ आगरा की ओर से बढ़ेगी। लेकिन इस मत को इतिहास में गलत माना जाता है क्योंकि इब्राहिम लोदी को अकेले राणा सांगा ने बहुत बार हरा रखा था।
  • दूसरा मत – महान इतिहासकार सतीश चंद्र अपनी किताब मेडिवल हिस्ट्री ऑफ इंडिया में लिखते हैं कि 1520-21 में पंजाब के सूबेदार दौलत खान ने एक प्रतिनिधिमंडल बाबर के पास भेजा था। वह अपने भतीजे इब्राहिम लोदी की सत्ता से खुद को अलग करना चाहता था। इस प्रतिनिधिमंडल ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया था।

बयाना का युद्ध

बयाना का युद्ध मेवाड़ के राजा राणा सांगा और बाबर की ओर से लड़ रहे अफगानो के बीच साल 1527 में हुआ था। बाबर जब भारत आया था तब उसने इब्राहिम लोदी से युद्ध करके दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन जब आगरा के पास राजस्थान में उसने बयाना के किले पर कब्ज़ा किया और अपने एक खास आदमी मेहंदी ख्वाजा को दे दिया था, तब राणा सांगा को ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने बाबर से युद्ध करने का फैसला लिया। जब ये बात मेहंदी ख्वाजा को पता चली कि सांगा युद्ध करने आ रहे हैं, तो उसने बाबर से सेना की मांग की। फिर बाबर ने अपनी सेना की कुछ टुकड़ी को युद्ध के लिए भेज दिया, जिसका सेनापति सुल्तान मिर्जा था। महाराणा सांगा ने दोनों को मार भगाया था। कहा जाता है जब मुगल सेना भाग रही थी, तब उनके पास एक वाद्य यंत्र था जिसका नाम तासा (TASA) था। वो उसे वहीं छोड़ गए थे, जिस पर बाद में राजपूतों ने कब्जा कर लिया था। मेवाड़ की सेना उस यंत्र को हमेशा साथ रखती थी यह बताने के लिए कि उन्होंने ये मुगलों से छीना था। इसी युद्ध को हम बयाना के युद्ध से जानते हैं।

खानवा का युद्ध

जब पानी सर से ऊपर उतर गया, तब महाराणा सांगा ने बाबर को भारत से खदेड़ने का फैसला लिया। इसी कारण राणा सांगा ने राजस्थान की सभी रियासतों को एक करके अति विशाल सेना का निर्माण किया। ये वही समय था जब हसन खान मेवाती,वसीम चंदेरी, इब्राहिम लोदी का छोटा भाई महमूद लोदी और पूरा विशाल राजपूत साम्राज्य राणा के साथ डटे हुए थे। जब राणा सांगा ने बयाना को जीता तो मुगलो में खलबली मच गई और सब सैनिकों ने बाबर से काबुल लौट जाने की बात कही। लेकिन बाबर नहीं माना और सैनिको का वेतन दोगुना कर दिया, सारे कर माफ़ कर दिए, कभी शराब न पीने की कसम खाई और जब उसने जिहाद के नारे लगाए, तब सभी सैनिक युद्ध के लिए दोबारा तैयार हो गए।

इसी तरह 17 मार्च 1527 इतिहास के पन्नो में दर्ज हुई, जहाँ राणा सांगा और मुगलो की सेना खानवा के मैदान में भिड़ गयी थी। इस युद्ध में राणा सांगा हाथी पर सवार होकर अपनी सेना का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि बाबर अपनी सेना का पीछे से नेतृत्व कर रहा था। उसने बहुत सारी तोपें अपनी सेना के पीछे छुपा रखी थी, आपको बता दें कि तोप जैसे आग उगलने वाले हथियार के बारे में भारतीयों ने पहले कभी नहीं सुना था। राणा सांगा ने अपनी सेना के साथ मिलकर मुग़ल सेना को चारों तरफ से घेर लिया था और युद्ध का रुख अपने पक्ष में कर लिया था। लेकिन तभी बाबर ने अपनी सभी तोपों का इस्तेमाल कर सांगा की सारी सेना को ढेर कर दिया और युद्ध का रुख अपनी ओर मोड़ लिया था। यही वो युद्ध है जिसके कारण महाराणा सांगा के शरीर पर 80 घाव आए थे। इस युद्ध में राणा सांगा को एक तीर लगा था जिसके कारण वो बेहोश हो गए थे। तब कुछ सरदार मिलकर उन्हें एक सुरक्षित जगह पर ले गए, लेकिन जब उन्हें होश आया तब उन्होंने युद्ध में वापस जाने की कसम खाई। तब कुछ सरदारों ने इसे खुदकुशी समझकर महाराणा के खाने में जहर मिला दिया और 30 जनवरी 1528 को वीर योद्धा राणा सांगा शहीद हो गए।

मेवाड़ का शासन

राणा सांग की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र रतन सिंह द्वितीय (शासनकाल 1528 -1531) ने मेवाड़ का राज-पाठ संभाला। लेकिन 1531 में एक युद्ध के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनके भाई विक्रमादित्य सिंह को मेवाड़ का राजा बनाया गया था। लेकिन इनका शासन ज्यादा लंबे समय तक नहीं चला, क्योंकि एक बार इन्होनें अपने दरबार में एक बूढ़े सरदार के साथ दुर्व्यवहार किया था। जिसके कारण सभी सरदार भड़क गए थे।

राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज सिंह के पुत्र बनवीर सिंह के मन में पहले से ही सिंहासन पर अधिकार पाने कि लालसा थी। लेकिन जब उसे पता चला कि मेवाड़ के सभी सरदार विक्रमादित्य सिंह से भड़के हुए हैं, तो उसने सभी सरदारों की मदद लेकर राजा विक्रमादित्य सिंह की हत्या कर दी और मेवाड़ कि राजगद्दी संभाल ली।

  • मावली का युद्ध

1540 ईस्वी में छिड़ा ये वो युद्ध है, जो महाराणा सांगा के पुत्र उदय सिंह द्वितीय और बनवीर सिंह के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में मारवाड़ के राजा राव मालदेव राठौड़ (5 दिसंबर 1511 – 7 नवंबर 1562) ने सिसोदिया रईसों और उदय सिंह द्वितीय के साथ मिलकर बनवीर सिंह को हराया। इसी मावली के युद्ध के कारण उदय सिंह द्वितीय ने मेवाड़ में अपने पुरखों से मिली सत्ता को हासिल किया था।

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