कर्म का सिद्धांत (Law of karma):
आपके मन में कभी न कभी ये सवाल जरूर आया होगा या हो सकता है बात करते समय किसी ने आपसे यह पूछा हो कि अगर भगवान् हैं, तो वो गलत काम करने वालों को रोकते क्यों नहीं? अगर वो गलत काम करते समय उस इंसान को रोक लें या उसी समय सजा दे दें, तो कोई गलत काम करेगा ही नहीं। अब प्रश्न तो चूंकि सही दिखाई देता है तो हो सकता है कि इस प्रश्न को लेकर आप भी सोच में पड़ गए हों। यह विषय कर्म के सिद्धांत (Law of Karma) से जुड़ा है, तो आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
उदहारण से समझें
आइए इस बात को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। आपने जीवन में कभी न कभी कोई परीक्षा तो जरूर दी होगी। तो परीक्षा देते समय अगर आप किसी भी प्रश्न का गलत उत्तर लिख रहे होते हैं तो क्या आपके अध्यापक आपको ऐसा करने से रोकते हैं आप कहेंगे नहीं! क्यों? वो ऐसा क्यों नहीं करते क्योंकि वो आपकी परीक्षा है वहां आप स्वतंत्र हैं। आप जो चाहे लिख सकते हैं। उसी के आधार पर यह तय होगा की किस विद्यार्थी ने कितनी मेहनत की है। किस विद्यार्थी का कैसा स्तर है या क्या रैंक है?

अगर परीक्षा देते समय आपके अध्यापक आपको गलत उत्तर लिखने से रोक लें और सही उत्तर बताने लग जाएँ तो फिर जिन बच्चों ने उस प्रश्न को करने के लिए मेहनत की है उनकी मेहनत ख़राब हो जाएगी। उनके साथ अन्याय होगा और दूसरी बात कि ऐसा करने से सभी बच्चे सही उत्तर ही लिखेंगे और परीक्षा का मतलब ही समाप्त हो जाएगा। न ही किसी बच्चे की मेहनत की कोई वैल्यू होगी और न ही किसी का स्तर पता लग पाएगा और न कोई फेल होगा। फिर हम उस परीक्षा के माध्यम से होने वाले आगे के कार्यक्रमों को भी नहीं कर पाएंगे। मान लीजिए अगर वो परीक्षा किसी अफसर के पद लिए हो रही है तो हम यह भी पता नहीं कर पाएंगे कि उस पद के लिए किसे उचित और पर्याप्त ज्ञान है और किसे नहीं।
कर्म का सिद्धांत (Law of Karma)
ठीक इसी तरह यह पृथ्वी आपकी कर्मभूमि है और यह मनुष्य जन्म आपकी परीक्षा है यहाँ आप कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन आपके कर्मों के आधार पर आपको जो परिणाम प्राप्त होगा उसे भोगने के लिए आप स्वतंत्र नहीं हैं। वो आपको भोगना ही पड़ेगा। इसे कर्म का सिद्धांत (Law of Karma) कहते हैं। आप यहाँ अपनी मर्जी के अनुसार कर्म कर सकते हैं आपको कोई रोकने वाला नहीं है, ईश्वर एक निरीक्षक की भाँति सब देख तो रहे हैं लेकिन वो किसी के काम में दखलंदाजी नहीं करते फिर चाहे वो अच्छा करे या बुरा। फिर जब आपकी यह परीक्षा समाप्त होगी तो आपके कर्मों के आधार पर आपको परिणाम प्राप्त होगा जिसे आपको भोगना ही होगा। अब आप चाहे तो मनुष्य जन्म के कर्मों के आधार पर स्वर्ग और ब्रह्मलोक समेत समस्त ऊपर के लोकों के सुख भोग सकते हैं या फिर गलत और अपवित्र कर्म करके तरह-तरह के नरकों के कष्ट भोग सकते हैं या फिर सुख-दुःख दोनों से ऊपर उठकर इस जन्म बंधन से मुक्त होकर अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो सकते हैं।
सृष्टि का बिगड़ जायेगा चक्र
अब आप जरा ये सोचिए कि अगर यहाँ पर ईश्वर गलत कर्म करते समय आपको रोकने अलग जाएँ तो आपकी स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। फिर तो आप गुलाम हुए न। आपको ईश्वर की मर्जी से चलना होगा। लेकिन ईश्वर किसी को गुलाम नहीं बनाते वो तो जीव को मुक्त करते हैं। उनका स्वभाव ही है मुक्त करना। दूसरी बात, ईश्वर अगर गलत करने वालों को रोकने अलग जाएँ तो फिर कोई गलत मार्ग पर चल नहीं पाएगा सबको मजबूरी में सही मार्ग पर ही चलना पड़ेगा। तो जिन लोगों ने अपनी इच्छा से सही रास्ता चुना था। जिन लोगों ने सृष्टि की सारे कष्टों को सहकर तप किया था। जिन्होंने मन की और वासनाओं की जलन को सहकर ईश्वर की भक्ति की थी। अपना स्वार्थ त्यागकर निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद की थी। उनके त्याग, तपस्या और भक्ति का तो कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। सभी लोग एक सामान हो जाएंगे और सृष्टि का पूरा चक्र बिगड़ जाएगा।

सृष्टि पूर्ण है
हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए इस सृष्टि में सही का महत्त्व तभी है जब तक गलत है। अच्छे का महत्त्व तभी है जब तक बुरा है। सही और गलत , अच्छा और बुरा दोनों एक तराजू के दो पलड़े हैं। जिस तरह हमें किसी भी चीज को तोलने के दूसरे पलड़े में बराबर वजन रखना पड़ता है, उसी तरह हम अच्छाई और बुराई का पता तभी लगा पाते हैं जब हम उनकी तुलना करते हैं। इस दुनिया में सही-गलत, अच्छा-बुरा दोनों जरुरी हैं। दोनों मिलकर इस सृष्टि को पूर्ण बनाते हैं। ईश्वर की इस सृष्टि में कोई कमी नहीं है यहाँ सब कुछ नीहित है। हमें ये चुनना है कि हमें क्या चाहिए।
उम्मीद है, हम आपकी इस प्रश्न के उत्तर को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर पाए होंगे। अगर आप हमसे किसी भी विषय पर कोई जानकारी चाहते हैं या अपने विचार रखना चाहते हैं तो हमें support@gyaanidost.com पर लिख सकते हैं। आप सभी के विचार एवं सुझाव सदर आमंत्रित हैं। हम आपकी भावनाओं का आदर करते हैं। धन्यवाद।
स्वस्थ रहें, सुखी रहें।